माना की हम यार नहीं
जब वो मुझसे अलग हुयी तो मुझे लगता था कि कुछ समय बाद मुझे उसके नाम से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मेरा बाथरूम में रोना, फ़िल्मी गानों में उसको देखना और ऐसे तमाम हज़ार सिम्प्टम जो मेरे बेइन्तेहाँ प्यार में होने की कहानी बयां कर रहे थे - मेरे हिसाब से सब अस्थाई थे। पर आज जब मैं ये लिख रहा हूँ तो उस से मिले हुए सात साल हो चुके है और उफ़, सालों बाद भी कुछ नहीं बदला। वो फेसबुक के फीड में उसकी फ़ोटो को देख कर दिल वैसे ही ठहर जाता है जैसे सात साल पहले होता था। रोमांटिक गानों में आज भी मैं हीरो हूँ और वो ही हिरोइन है। साला गलत टाइम पर पैदा हो गए। व्हाट्सएप्प और फेसबुक के दौड़ में आपके फीड में उसकी फ़ोटो अपने आप आ जाती है। आप हो ही इतने कूल की बाकी आधे आशिक़ और हाफ गर्लफ्रेंड की तरह सोशल नेटवर्किंग साइट पर ब्लॉक नहीं कर सकते क्यूंकि ब्लॉक तो आमच्योर लोग करते है। हम तो भाई , पैदा ही मैच्योर हुए थे। काश उस ज़माने में पैदा होते जब दो पुराने प्रेमी एक दूसरे को कही इत्तेफ़ाक़ से मिलते थे। मेरी कहानी में उसका नाम नहीं लिखना चाहता हूँ। पर दो घण्टे सोचने के बाद भी कोई और उसके नाम के साथ न्याय नहीं कर पा रहा है।