खट्टी - मीठी लाइफ-3

-------------धारावाहिक  का अंतिम अंक---------------------------------

रविश चले गए  पार्टी में। बालकनी में खड़े हो कर उनकी जाती कार को देखना अब एक रिवाज़ सा बन गया था। और रविश भी कभी हाथ हिला कर बाय कहना नहीं भूलते। मैं खुद में खोयी हुयी राह चलते लोगों को देख रही हूँ . सब आम लोग है। साधारण। लेकिन सब की एक खुद की गज़ब की कहानी है। बिलकुल विशिष्ट।

वो तेज़ कदमो से जाती हुयी लड़की को देखो। कहाँ जा रही होगी? शायद दोस्तों के संग मस्ती करने, या फिर काम करने। और वो देखो पानीपूरी वाले को। ईशान  कहता था कि  पानीपूरी वाला सबसे आमिर इंसान है, बड़े बड़े लोग कार से उतर कर हाथ जोड़ कर पानीपूरी वाले के सामने खड़े हो जाते है। कुछ भी बोलता था ईशान। अरे, वो कौन है, हाथ में डोमिनोज का पिज़्ज़ा ले कर जा रहा है, कद काठी तो बिलकुल ईशान  जैसी है। मैं तो बस अपने ख्वाब में ही थी जैसे। कोई और था, वैसे भी ईशान  की कद काठी ऐसी कॉलेज में थी। अब तो मोटा हो गया है। वो जैसे माँ के ४० साल का बच्चा भी छोटा होता है न, वैसे ही मेरे मन में भी ईशान की छवि कॉलेज वाली ही थी।


मैं तो जैसे आज यादों  के सागर में गोता लगा रही थी। बीप की आवाज़ से मोबाइल बजा। मेसेज है किसी का। भेजने वाले का नाम देख कर दिल धक् से रह गया। ईशान  था, पूछ  रहा था, "कवि, खाना खा ली?" वैसे ही जैसे वो कॉलेज में पूछा करता था, कुछ नहीं बदला। मेरी मुस्कराहट ज़रा चौड़ी  हो गयी। कहता था ईशान, "फिकर नॉट, कुछ नहीं बदलेगा।"

 मैंने रिप्लाई किया , "नहीं"

जल्द ही एक और मेसेज आया, "कवि, ज़रा दरवाज़ा खोल न"

मैं भागी भागी दरवाज़ा खोलने को दौड़ी। ये लो, सामने खड़ा था ईशान, हाथ में डोमिनोज का बड़ा सा थैला लिए हुए।

"तू बिलीव नहीं करेगा, मैंने तुझे आज कितना याद किया!"

"झूठी"

"अरे,झूठी क्यों"

"याद करने वाले फ़ोन करते है, मेसेज करते है। ये वाला "याद" काउंट नहीं होगा।

"अच्छा बाबा! तू दिल्ली कब आया। और आने से पहले बताया क्यूँ नहीं"

"वो क्या है न कवि, दिल से दिल का कनेक्शन। तुमने बुलाया और हम चले आये।" और ईशान  खिलखिलाया।

फिर वो आगे बोला, "बस १ घंटे पहले लैंड किया, पिज़्ज़ा लिया और सीधे तेरे घर। रविश सर कहाँ है, मुझे तो लगा था की अब वापस आ गए होंगे ऑफिस से। आज कल कुछ ज्यादा ही नोट छाप रहे है क्या?"

"उनकी कंपनी की पार्टी है, मेरा मन नहीं था तो मैं नहीं गयी।"

"अरे मैंने तो लार्ज पिज़्ज़ा ले लिया था, सोचा था की तीनो मजे से खायेंगे। चल छत  पर, बहुत जोरो की भूख लगी है।"

मैंने फ्रिज से एक बोतल पानी लिया और हम पहुँच गए छत पर।

"अच्छा, कृति नहीं आई?  और तू उस से क्यूँ लड़ता है इतना। तुझे पता भी है कितना परेशान  हो जाती है वो!"

" कवि , वो लड़ाई से न प्यार बढ़ता है इसलिए। नहीं, उसकी माँ आई है तो वो वही रुक गयी। इतने सालो में कोई भी मेरी लड़ाई छिपी है क्या तुमसे, वैसे भी तू उसकी पार्टी में क्यूँ रहती है हमेशा। तू मेरी दोस्त है उसकी ।"

"कृति तो कहती है कवि  तू ही सम्हाल इसे, मेरे हाथ मनाही है तेरा दोस्त।"

और हम दोनों खिलखिला कर हँस पड़े। बातें करते हुए टाइम निकलता ही गया। रात १० बजे मीटिंग थी उसकी  और सुबह की वापस फ्लाइट।

जाने का वक़्त हो गया।

ईशान  ने पॉकेट से एक लिफ़ाफा निकला। लिफ़ाफा मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोला,"कवि, तेरे लिए कुछ बाज़ार में तो मिलता नहीं, ये रख ले।"

मैंने लिफ़ाफा खोल कर देखा, एक सुखा हुआ गालब था अन्दर।

सच में, कुछ भी नहीं बदला।

-------------------------------------समाप्त ------------------------------------------------------







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