खट्टी-मीठी जिंदगी-२

कॉलेज के दिनों से ही ईशान को कृति पसंद थी। घंटो बैठ कर हमने उसको पटाने के प्लान बनाये। राह चलते अगर मुझे कृति  दिखती थी, तो मैं ईशान को मेसेज कर देती थी, और वो उन दोनों की मुलाकात जो एक्सीडेंटल लगती थी, वास्तव में प्लांड होती थी। दिन बीतते गए और धीरे धीरे कृति और ईशान की दोस्ती बढती गयी। और एक दिन वो भी आया, जब दोनों कॉलेज के नामी कपल बन गए। मुझे लगा अब मेरे बैकग्राउंड में जाने का टाइम आ गया। 

लेकिन  नहीं, नहीं मैं कही बैकग्राउंड में नहीं गयी। ईशान  था वो। अभी भी हम पहले जितने  ही करीब थे, उतनी ही बातें करते थे, उतना ही ध्यान रखता था वो मेरा । कभी कभी लगता था कृति को देख कर कैसी लड़की है, क्यूँ इतना बात करने देती है ईशान  को। उसे शायद पता था, ईशान को बांध कर नहीं जीत सकते। जैसा ईशान, वैसी कृति। मेरी फॅमिली बड़ी हो गयी। मैं खुश थी। हँसी- ख़ुशी में दिन कट रहे थे। डोमिनोज का पिज़्ज़ा एसी में खाने में उतना टेस्टी नहीं लगता जितना रोड के किनारे फुटपाथ पर। शाम और खूबसूरत हो भी नहीं सकती थी।

धीरे-धीरे वो भी दिन आया, जब हमारा कॉलेज में आखिरी दिन था। मैं उस दिन को याद करना नहीं चाहती, और वो दिन है की, मैं कभी भूलती ही नहीं। कृति को एअरपोर्ट पर छोड़ कर हम वापस कॉलेज आये। उसी गुलमोहर के पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठे। पर आज तो शांति थी। काट रही थी। ना मैं कुछ बोल पा रही थी ना वो। हम दोनों को नहीं पता था की आगे क्या होगा। फिजूल के वादे वो नहीं करता था, मैं चाहती भी नहीं थी। घबराया था वो, मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला, जो होगा देखा जायेगा, फिकर नॉट।उसने मुझे कंधे पर सुलाया और बोला, "बच्चा, मजा आ गया था आयरलैंड में! स्पेन चले क्या?"
और हम दोनों खिलखिला कर हस पड़े।

घर की जिम्मेदारी और करियर को लेकर ईशान गंभीर हो गया। वो डायलाग था ना रंग दे बसंती में, "कॉलेज के अन्दर हम ज़िन्दगी को नचाते  है, और कॉलेज के बहार जिंदगी हमें नचाती है हैं। " बात अभी भी होती थी हमारी, पर कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ने की धुन सवार थी उसके अन्दर। पर हाँ, उसकी बातों में अभी भी उतना ही कंसर्न था, जितना पहले होता था। कृति अभी भी उसके साथ थी। कभी कभी सोचती जरूर थी, क्या अगर ईशान मेरे साथ होता, तो लाइफ कैसी होती। अब रोज़ बात तो नहीं होती थी, लेकिन हर सन्डे शाम उसका फ़ोन बिना भूले आता था।और हाँ, हर सुबह एक मेसेज भी आता था,"यू  लुक ब्यूटीफुल।" अब तो ये अघोषित नियम सा हो गया। धीरे धीरे उसने अपनी सारी  जिम्मेदारी निभा ली। बहन की शादी कर दी। 

एक वो भी सन्डे था, जिस दिन वो मुझसे पूछा,"बच्चा, कृति से शादी कर लूँ या तुझसे करूँ ?" और फिर उसकी मदमस्त हँसी। 
क्या बोलती मैं। दो पल सोचा और बोली," तू दोस्त ही अच्छा है, मुझसे शादी कर लेगा तो कृति की शिकायत किस से करेगा।" 

वो फिर पूछा,"कवि, प्यार का मतलब सिर्फ शादी है क्या?"

मैं बोली,"क्या हुआ बच्चा?"

वो बोला,"बता ना! प्यार का मतलब शादी और फिर बच्चे पैदा करने तक सीमित है?"

मैं झिझक गयी। बड़ी बात पूछ दी ईशान  ने। आज तक तो यही डेफिनेसन थी, आम लोग तो यही जानते समझते है। 
मैं पूछी, "किस बात का डर  लग रहा है मेरे ईशान  को?"

"डर  लगता हैं, खो दूंगा अपनी कवि को" रुंधे गले से आवाज़ आई।

पता नहीं क्यों मेरे गले से आवाज़ ही नहीं निकल पाई। और दो बूँद आखों से छलक गया। 
"ईशान !" इतना ही बोल पाई।

"यहाँ क्यूँ नहीं है तू कवि" ईशान बोला और बच्चे की तरह सुबक सुबक कर रोने लगा।

"अपनी कवि  पर इतना ही विश्वास है तुझे!" मैं बोली और लगा की जैसे बेटी के विदाई का वक़्त हो चला है।

"कवि , मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया।"

"ईशान, तू हर बात को अपनी गलती क्यूँ मानता है?मैंने तेरे साथ रहने के कोई सपने नहीं देखे थे। तुझे ऐसा क्यूँ लगता है, तू मेरा दोस्त है ना?"

"हूँ "

"फिर तू  बता तूने क्या गलती की? मैं कही नहीं जा रही। तू भी कही नहीं जा रहा।" मैंने किसी तरह खुद को समेटते हुए बोली।

"कवि , आई लव यु सो मच ! " रूंधे गले से ईशान बोला।

"कुछ नया बोल। " मैं बोली और वो शायद मुस्कुराया।

"आई लव यु टू"

"पेरिस, चले क्या ?" और हम खिलखिला कर हँस दिए।

.-------कहानी अभी बाकि है मेरे दोस्त, शेष अगले पोस्ट में




Comments

Most Viewed