खट्टी - मीठी लाइफ
मेनस्ट्रीम होने से बहुत डर लगता उसको। बाकी देखने में काफी मेनस्ट्रीम था। गेंहुआ रंग, सामान्य कद-काठी, कोई विशेष आकर्षण नहीं। पर वो खुद को अलग मानता था। आत्मविश्वास था उसके अन्दर। दो पल बात करने से किसी को पता चल गए। पढाई में बहुत अच्छा नहीं था, ना ही खेल कूद में। पर उस आत्मविश्वास में कुछ बात थी, किसी को भी जल्दी जीत लेता था। ईशान था वो, मेरा दोस्त।
"कवि ....कवि .....कविता, कहाँ हो? "
रविश की पुकार से मैं जैसे नींद से जागी। आज सुबह से ही याद आ रही थी ईशान की।
"हाँ, मैं यहाँ बालकनी में।"
"कवि, आज रात में कंपनी की तरफ से पार्टी है। चल रही हो ना? "
"नहीं, तुम जाओं। मेरा सर भारी लग रहा है। वैसे भी तुम्हारी ऑफिस की पार्टियाँ मुझे बोर करती हैं।"
"ठीक है, जो तुम्हे ठीक लगे।"
बालों पर हाथ फेर कर रविश चले गए। अब तो मुझे भी प्यार हो गया है रविश से। साथ रहते रहते तो पालतू जानवर से भी प्यार हो जाता है और फिर रविश तो कितने अच्छे है। जब माँ ने मेरी शादी के लिए रविश को ढूंढा था, मेरे लिए तो बस एक अरेंजमेंट था आगे की जिंदगी बिताने के लिए। पर रविश ने भी मेरा दिल जीत लिया। जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं होती। रविश का फोटो देख मैं मुस्कुरा उठी।
कल बर्थडे हैं ईशान का। दोस्त था मेरा। अजीब था। फोटो खीचने का शौक था, पर खिचवाने का नहीं। बर्थडे पर गिफ्ट देने का शौक था, पर अपने जन्मदिन पर बधाइयाँ लेने का नहीं। किसी पर विस्वास नहीं करना था, पर दुसरो का विस्वास न तोड़ने का। अलग ही दुनिया थी, उसी में परेशान रहता था, उसी में खुश रहता था।
जैसा भी था, अच्छा दोस्त था मेरा। कॉलेज में मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं होने का बीड़ा उठाया था। सब कुछ अपने ही सर लेना चाहता था। वो भी दिन थे! दुनिया की सारी अजीब बातें मैंने उसी के साथ पहले की।
मोबाइल की घंटी बजी। बेटे का फ़ोन था, कह रहा था की आयरलैंड के ट्रिप की फोटो मेल कर रहा हैं। फोटो अच्छी आई है।
आयरलैंड तो मैं पिछले महीने गयी थी . पर मैं और इशान तो कॉलेज में ही सपनो में पूरी दुनिया घूम के आ चुके थे। खयालो में ही हमने स्कॉटलैंड में अर्चेरी सीखी और न्यूजीलैंड में बंजी जंपिंग भी की।
ही वाज़ फॅमिली।
रात में दूर शहर की लाइट देखना पसंद था हम दोनों को। गुलमोहर के पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ कर हमने दुनिया भर की बातें की। जिंदगी में पैसो की अहमियत से लेकर घर, आस-पड़ोस सब की बातें की। कहानियों का पिटारा था वो। था भी तो वैसा ही, लोग बातों ही बातों में अपनी दिल में छुपायें राज़ उसके सामने खोल देते थे और वो बस हाँ- हाँ करते हुए चुप चाप उनकी बातों को सुन लिया करता था। दुनिया के सामने बड़ा शरीफ बनता था पर मेरे सामने तो जैसे वो अपने बस में ही नहीं था। कुछ भी बोलना था बस। सॉरी भी बुलवाना पड़ता था उस से।
कॉलेज के दिनों से ही ईशान को कृति पसंद थी। घंटो बैठ कर हमने उसको पटाने के प्लान बनाये। राह चलते अगर मुझे कृति दिखती थी, तो मैं ईशान को मेसेज कर देती थी, और वो उन दोनों की मुलाकात जो एक्सीडेंटल लगती थी, वास्तव में प्लांड होती थी। दिन बीतते गए और धीरे धीरे कृति और ईशान की दोस्ती बढती गयी। और एक दिन वो भी आया, जब दोनों कॉलेज के नामी कपल बन गए। मुझे लगा अब मेरे बैकग्राउंड में जाने का टाइम आ गया।
लेकिन नहीं, नहीं मैं कही बैकग्राउंड में नहीं गयी। ईशान था वो। अभी भी हम पहले जितने ही करीब थे, उतनी ही बातें करते थे, उतना ही ध्यान रखता था वो मेरा । कभी कभी लगता था कृति को देख कर कैसी लड़की है, क्यूँ इतना बात करने देती है ईशान को। उसे शायद पता था, ईशान को बांध कर नहीं जीत सकते। जैसा ईशान, वैसी कृति। मेरी फॅमिली बड़ी हो गयी। मैं खुश थी। हँसी- ख़ुशी में दिन कट रहे थे। डोमिनोज का पिज़्ज़ा एसी में खाने में उतना टेस्टी नहीं लगता जितना रोड के किनारे फुटपाथ पर। शाम और खूबसूरत हो भी नहीं सकती थी।
धीरे-धीरे वो भी दिन आया, जब हमारा कॉलेज में आखिरी दिन था। मैं उस दिन को याद करना नहीं चाहती, और वो दिन है की, मैं कभी भूलती ही नहीं। कृति को एअरपोर्ट पर छोड़ कर हम वापस कॉलेज आये। उसी गुलमोहर के पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठे। पर आज तो शांति थी। काट रही थी। ना मैं कुछ बोल पा रही थी ना वो। हम दोनों को नहीं पता था की आगे क्या होगा। फिजूल के वादे वो नहीं करता था, मैं चाहती भी नहीं थी। घबराया था वो, मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला, जो होगा देखा जायेगा, फिकर नॉट।उसने मुझे कंधे पर सुलाया और बोला, "बच्चा, मजा आ गया था आयरलैंड में! स्पेन चले क्या?"
और हम दोनों खिलखिला कर हस पड़े।
घर की जिम्मेदारी और करियर को लेकर ईशान गंभीर हो गया। वो डायलाग था ना रंग दे बसंती में, "कॉलेज के अन्दर हम ज़िन्दगी को नचाते है, और कॉलेज के बहार जिंदगी हमें नचाती है हैं। " बात अभी भी होती थी हमारी, पर कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ने की धुन सवार थी उसके अन्दर। पर हाँ, उसकी बातों में अभी भी उतना ही कंसर्न था, जितना पहले होता था। कृति अभी भी उसके साथ थी। कभी कभी सोचती जरूर थी, क्या अगर ईशान मेरे साथ होता, तो लाइफ कैसी होती। अब रोज़ बात तो नहीं होती थी, लेकिन हर सन्डे शाम उसका फ़ोन बिना भूले आता था।और हाँ, हर सुबह एक मेसेज भी आता था,"यू लुक ब्यूटीफुल।" अब तो ये अघोषित नियम सा हो गया। धीरे धीरे उसने अपनी सारी जिम्मेदारी निभा ली। बहन की शादी कर दी।
एक वो भी सन्डे था, जिस दिन वो मुझसे पूछा,"बच्चा, कृति से शादी कर लूँ या तुझसे करूँ ?" और फिर उसकी मदमस्त हँसी।
क्या बोलती मैं। दो पल सोचा और बोली," तू दोस्त ही अच्छा है, मुझसे शादी कर लेगा तो कृति की शिकायत किस से करेगा।"
वो फिर पूछा,"कवि, प्यार का मतलब सिर्फ शादी है क्या?"
मैं बोली,"क्या हुआ बच्चा?"
वो बोला,"बता ना! प्यार का मतलब शादी और फिर बच्चे पैदा करने तक सीमित है?"
मैं झिझक गयी। बड़ी बात पूछ दी ईशान ने। आज तक तो यही डेफिनेसन थी, आम लोग तो यही जानते समझते है।
मैं पूछी, "किस बात का डर लग रहा है मेरे ईशान को?"
"डर लगता हैं, खो दूंगा अपनी कवि को" रुंधे गले से आवाज़ आई।
पता नहीं क्यों मेरे गले से आवाज़ ही नहीं निकल पाई। और दो बूँद आखों से छलक गया।
"ईशान !" इतना ही बोल पाई।
"यहाँ क्यूँ नहीं है तू कवि" ईशान बोला और बच्चे की तरह सुबक सुबक कर रोने लगा।
"अपनी कवि पर इतना ही विश्वास है तुझे!" मैं बोली और लगा की जैसे बेटी के विदाई का वक़्त हो चला है।
"कवि , मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया।"
"ईशान, तू हर बात को अपनी गलती क्यूँ मानता है?मैंने तेरे साथ रहने के कोई सपने नहीं देखे थे। तुझे ऐसा क्यूँ लगता है, तू मेरा दोस्त है ना?"
"हूँ "
"फिर तू बता तूने क्या गलती की? मैं कही नहीं जा रही। तू भी कही नहीं जा रहा।" मैंने किसी तरह खुद को समेटते हुए बोली।
"कवि , आई लव यु सो मच ! " रूंधे गले से ईशान बोला।
"कुछ नया बोल। " मैं बोली और वो शायद मुस्कुराया।
"आई लव यु टू"
"पेरिस, चले क्या ?" और हम खिलखिला कर हँस दिए।
-------------धारावाहिक का अंतिम अंक---------------------------------
रविश चले गए पार्टी में। बालकनी में खड़े हो कर उनकी जाती कार को देखना अब एक रिवाज़ सा बन गया था। और रविश भी कभी हाथ हिला कर बाय कहना नहीं भूलते। मैं खुद में खोयी हुयी राह चलते लोगों को देख रही हूँ . सब आम लोग है। साधारण। लेकिन सब की एक खुद की गज़ब की कहानी है। बिलकुल विशिष्ट।
वो तेज़ कदमो से जाती हुयी लड़की को देखो। कहाँ जा रही होगी? शायद दोस्तों के संग मस्ती करने, या फिर काम करने। और वो देखो पानीपूरी वाले को। ईशान कहता था कि पानीपूरी वाला सबसे आमिर इंसान है, बड़े बड़े लोग कार से उतर कर हाथ जोड़ कर पानीपूरी वाले के सामने खड़े हो जाते है। कुछ भी बोलता था ईशान। अरे, वो कौन है, हाथ में डोमिनोज का पिज़्ज़ा ले कर जा रहा है, कद काठी तो बिलकुल ईशान जैसी है। मैं तो बस अपने ख्वाब में ही थी जैसे। कोई और था, वैसे भी ईशान की कद काठी ऐसी कॉलेज में थी। अब तो मोटा हो गया है। वो जैसे माँ के ४० साल का बच्चा भी छोटा होता है न, वैसे ही मेरे मन में भी ईशान की छवि कॉलेज वाली ही थी।
मैं तो जैसे आज यादों के सागर में गोता लगा रही थी। बीप की आवाज़ से मोबाइल बजा। मेसेज है किसी का। भेजने वाले का नाम देख कर दिल धक् से रह गया। ईशान था, पूछ रहा था, "कवि, खाना खा ली?" वैसे ही जैसे वो कॉलेज में पूछा करता था, कुछ नहीं बदला। मेरी मुस्कराहट ज़रा चौड़ी हो गयी। कहता था ईशान, "फिकर नॉट, कुछ नहीं बदलेगा।"
मैंने रिप्लाई किया , "नहीं"
जल्द ही एक और मेसेज आया, "कवि, ज़रा दरवाज़ा खोल न"
मैं भागी भागी दरवाज़ा खोलने को दौड़ी। ये लो, सामने खड़ा था ईशान, हाथ में डोमिनोज का बड़ा सा थैला लिए हुए।
"तू बिलीव नहीं करेगा, मैंने तुझे आज कितना याद किया!"
"झूठी"
"अरे,झूठी क्यों"
"याद करने वाले फ़ोन करते है, मेसेज करते है। ये वाला "याद" काउंट नहीं होगा।
"अच्छा बाबा! तू दिल्ली कब आया। और आने से पहले बताया क्यूँ नहीं"
"वो क्या है न कवि, दिल से दिल का कनेक्शन। तुमने बुलाया और हम चले आये।" और ईशान खिलखिलाया।
फिर वो आगे बोला, "बस १ घंटे पहले लैंड किया, पिज़्ज़ा लिया और सीधे तेरे घर। रविश सर कहाँ है, मुझे तो लगा था की अब वापस आ गए होंगे ऑफिस से। आज कल कुछ ज्यादा ही नोट छाप रहे है क्या?"
"उनकी कंपनी की पार्टी है, मेरा मन नहीं था तो मैं नहीं गयी।"
"अरे मैंने तो लार्ज पिज़्ज़ा ले लिया था, सोचा था की तीनो मजे से खायेंगे। चल छत पर, बहुत जोरो की भूख लगी है।"
मैंने फ्रिज से एक बोतल पानी लिया और हम पहुँच गए छत पर।
"अच्छा, कृति नहीं आई? और तू उस से क्यूँ लड़ता है इतना। तुझे पता भी है कितना परेशान हो जाती है वो!"
" कवि , वो लड़ाई से न प्यार बढ़ता है इसलिए। नहीं, उसकी माँ आई है तो वो वही रुक गयी। इतने सालो में कोई भी मेरी लड़ाई छिपी है क्या तुमसे, वैसे भी तू उसकी पार्टी में क्यूँ रहती है हमेशा। तू मेरी दोस्त है उसकी ।"
"कृति तो कहती है कवि तू ही सम्हाल इसे, मेरे हाथ मनाही है तेरा दोस्त।"
और हम दोनों खिलखिला कर हँस पड़े। बातें करते हुए टाइम निकलता ही गया। रात १० बजे मीटिंग थी उसकी और सुबह की वापस फ्लाइट।
जाने का वक़्त हो गया।
ईशान ने पॉकेट से एक लिफ़ाफा निकला। लिफ़ाफा मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोला,"कवि, तेरे लिए कुछ बाज़ार में तो मिलता नहीं, ये रख ले।"
मैंने लिफ़ाफा खोल कर देखा, एक सुखा हुआ गालब था अन्दर।
सच में, कुछ भी नहीं बदला।
-------------------------------------समाप्त ------------------------------------------------------
"कवि ....कवि .....कविता, कहाँ हो? "
रविश की पुकार से मैं जैसे नींद से जागी। आज सुबह से ही याद आ रही थी ईशान की।
"हाँ, मैं यहाँ बालकनी में।"
"कवि, आज रात में कंपनी की तरफ से पार्टी है। चल रही हो ना? "
"नहीं, तुम जाओं। मेरा सर भारी लग रहा है। वैसे भी तुम्हारी ऑफिस की पार्टियाँ मुझे बोर करती हैं।"
"ठीक है, जो तुम्हे ठीक लगे।"
बालों पर हाथ फेर कर रविश चले गए। अब तो मुझे भी प्यार हो गया है रविश से। साथ रहते रहते तो पालतू जानवर से भी प्यार हो जाता है और फिर रविश तो कितने अच्छे है। जब माँ ने मेरी शादी के लिए रविश को ढूंढा था, मेरे लिए तो बस एक अरेंजमेंट था आगे की जिंदगी बिताने के लिए। पर रविश ने भी मेरा दिल जीत लिया। जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं होती। रविश का फोटो देख मैं मुस्कुरा उठी।
कल बर्थडे हैं ईशान का। दोस्त था मेरा। अजीब था। फोटो खीचने का शौक था, पर खिचवाने का नहीं। बर्थडे पर गिफ्ट देने का शौक था, पर अपने जन्मदिन पर बधाइयाँ लेने का नहीं। किसी पर विस्वास नहीं करना था, पर दुसरो का विस्वास न तोड़ने का। अलग ही दुनिया थी, उसी में परेशान रहता था, उसी में खुश रहता था।
जैसा भी था, अच्छा दोस्त था मेरा। कॉलेज में मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं होने का बीड़ा उठाया था। सब कुछ अपने ही सर लेना चाहता था। वो भी दिन थे! दुनिया की सारी अजीब बातें मैंने उसी के साथ पहले की।
मोबाइल की घंटी बजी। बेटे का फ़ोन था, कह रहा था की आयरलैंड के ट्रिप की फोटो मेल कर रहा हैं। फोटो अच्छी आई है।
आयरलैंड तो मैं पिछले महीने गयी थी . पर मैं और इशान तो कॉलेज में ही सपनो में पूरी दुनिया घूम के आ चुके थे। खयालो में ही हमने स्कॉटलैंड में अर्चेरी सीखी और न्यूजीलैंड में बंजी जंपिंग भी की।
ही वाज़ फॅमिली।
रात में दूर शहर की लाइट देखना पसंद था हम दोनों को। गुलमोहर के पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ कर हमने दुनिया भर की बातें की। जिंदगी में पैसो की अहमियत से लेकर घर, आस-पड़ोस सब की बातें की। कहानियों का पिटारा था वो। था भी तो वैसा ही, लोग बातों ही बातों में अपनी दिल में छुपायें राज़ उसके सामने खोल देते थे और वो बस हाँ- हाँ करते हुए चुप चाप उनकी बातों को सुन लिया करता था। दुनिया के सामने बड़ा शरीफ बनता था पर मेरे सामने तो जैसे वो अपने बस में ही नहीं था। कुछ भी बोलना था बस। सॉरी भी बुलवाना पड़ता था उस से।
कॉलेज के दिनों से ही ईशान को कृति पसंद थी। घंटो बैठ कर हमने उसको पटाने के प्लान बनाये। राह चलते अगर मुझे कृति दिखती थी, तो मैं ईशान को मेसेज कर देती थी, और वो उन दोनों की मुलाकात जो एक्सीडेंटल लगती थी, वास्तव में प्लांड होती थी। दिन बीतते गए और धीरे धीरे कृति और ईशान की दोस्ती बढती गयी। और एक दिन वो भी आया, जब दोनों कॉलेज के नामी कपल बन गए। मुझे लगा अब मेरे बैकग्राउंड में जाने का टाइम आ गया।
लेकिन नहीं, नहीं मैं कही बैकग्राउंड में नहीं गयी। ईशान था वो। अभी भी हम पहले जितने ही करीब थे, उतनी ही बातें करते थे, उतना ही ध्यान रखता था वो मेरा । कभी कभी लगता था कृति को देख कर कैसी लड़की है, क्यूँ इतना बात करने देती है ईशान को। उसे शायद पता था, ईशान को बांध कर नहीं जीत सकते। जैसा ईशान, वैसी कृति। मेरी फॅमिली बड़ी हो गयी। मैं खुश थी। हँसी- ख़ुशी में दिन कट रहे थे। डोमिनोज का पिज़्ज़ा एसी में खाने में उतना टेस्टी नहीं लगता जितना रोड के किनारे फुटपाथ पर। शाम और खूबसूरत हो भी नहीं सकती थी।
धीरे-धीरे वो भी दिन आया, जब हमारा कॉलेज में आखिरी दिन था। मैं उस दिन को याद करना नहीं चाहती, और वो दिन है की, मैं कभी भूलती ही नहीं। कृति को एअरपोर्ट पर छोड़ कर हम वापस कॉलेज आये। उसी गुलमोहर के पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठे। पर आज तो शांति थी। काट रही थी। ना मैं कुछ बोल पा रही थी ना वो। हम दोनों को नहीं पता था की आगे क्या होगा। फिजूल के वादे वो नहीं करता था, मैं चाहती भी नहीं थी। घबराया था वो, मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला, जो होगा देखा जायेगा, फिकर नॉट।उसने मुझे कंधे पर सुलाया और बोला, "बच्चा, मजा आ गया था आयरलैंड में! स्पेन चले क्या?"
और हम दोनों खिलखिला कर हस पड़े।
घर की जिम्मेदारी और करियर को लेकर ईशान गंभीर हो गया। वो डायलाग था ना रंग दे बसंती में, "कॉलेज के अन्दर हम ज़िन्दगी को नचाते है, और कॉलेज के बहार जिंदगी हमें नचाती है हैं। " बात अभी भी होती थी हमारी, पर कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ने की धुन सवार थी उसके अन्दर। पर हाँ, उसकी बातों में अभी भी उतना ही कंसर्न था, जितना पहले होता था। कृति अभी भी उसके साथ थी। कभी कभी सोचती जरूर थी, क्या अगर ईशान मेरे साथ होता, तो लाइफ कैसी होती। अब रोज़ बात तो नहीं होती थी, लेकिन हर सन्डे शाम उसका फ़ोन बिना भूले आता था।और हाँ, हर सुबह एक मेसेज भी आता था,"यू लुक ब्यूटीफुल।" अब तो ये अघोषित नियम सा हो गया। धीरे धीरे उसने अपनी सारी जिम्मेदारी निभा ली। बहन की शादी कर दी।
एक वो भी सन्डे था, जिस दिन वो मुझसे पूछा,"बच्चा, कृति से शादी कर लूँ या तुझसे करूँ ?" और फिर उसकी मदमस्त हँसी।
क्या बोलती मैं। दो पल सोचा और बोली," तू दोस्त ही अच्छा है, मुझसे शादी कर लेगा तो कृति की शिकायत किस से करेगा।"
वो फिर पूछा,"कवि, प्यार का मतलब सिर्फ शादी है क्या?"
मैं बोली,"क्या हुआ बच्चा?"
वो बोला,"बता ना! प्यार का मतलब शादी और फिर बच्चे पैदा करने तक सीमित है?"
मैं झिझक गयी। बड़ी बात पूछ दी ईशान ने। आज तक तो यही डेफिनेसन थी, आम लोग तो यही जानते समझते है।
मैं पूछी, "किस बात का डर लग रहा है मेरे ईशान को?"
"डर लगता हैं, खो दूंगा अपनी कवि को" रुंधे गले से आवाज़ आई।
पता नहीं क्यों मेरे गले से आवाज़ ही नहीं निकल पाई। और दो बूँद आखों से छलक गया।
"ईशान !" इतना ही बोल पाई।
"यहाँ क्यूँ नहीं है तू कवि" ईशान बोला और बच्चे की तरह सुबक सुबक कर रोने लगा।
"अपनी कवि पर इतना ही विश्वास है तुझे!" मैं बोली और लगा की जैसे बेटी के विदाई का वक़्त हो चला है।
"कवि , मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया।"
"ईशान, तू हर बात को अपनी गलती क्यूँ मानता है?मैंने तेरे साथ रहने के कोई सपने नहीं देखे थे। तुझे ऐसा क्यूँ लगता है, तू मेरा दोस्त है ना?"
"हूँ "
"फिर तू बता तूने क्या गलती की? मैं कही नहीं जा रही। तू भी कही नहीं जा रहा।" मैंने किसी तरह खुद को समेटते हुए बोली।
"कवि , आई लव यु सो मच ! " रूंधे गले से ईशान बोला।
"कुछ नया बोल। " मैं बोली और वो शायद मुस्कुराया।
"आई लव यु टू"
"पेरिस, चले क्या ?" और हम खिलखिला कर हँस दिए।
-------------धारावाहिक का अंतिम अंक---------------------------------
रविश चले गए पार्टी में। बालकनी में खड़े हो कर उनकी जाती कार को देखना अब एक रिवाज़ सा बन गया था। और रविश भी कभी हाथ हिला कर बाय कहना नहीं भूलते। मैं खुद में खोयी हुयी राह चलते लोगों को देख रही हूँ . सब आम लोग है। साधारण। लेकिन सब की एक खुद की गज़ब की कहानी है। बिलकुल विशिष्ट।
वो तेज़ कदमो से जाती हुयी लड़की को देखो। कहाँ जा रही होगी? शायद दोस्तों के संग मस्ती करने, या फिर काम करने। और वो देखो पानीपूरी वाले को। ईशान कहता था कि पानीपूरी वाला सबसे आमिर इंसान है, बड़े बड़े लोग कार से उतर कर हाथ जोड़ कर पानीपूरी वाले के सामने खड़े हो जाते है। कुछ भी बोलता था ईशान। अरे, वो कौन है, हाथ में डोमिनोज का पिज़्ज़ा ले कर जा रहा है, कद काठी तो बिलकुल ईशान जैसी है। मैं तो बस अपने ख्वाब में ही थी जैसे। कोई और था, वैसे भी ईशान की कद काठी ऐसी कॉलेज में थी। अब तो मोटा हो गया है। वो जैसे माँ के ४० साल का बच्चा भी छोटा होता है न, वैसे ही मेरे मन में भी ईशान की छवि कॉलेज वाली ही थी।
मैं तो जैसे आज यादों के सागर में गोता लगा रही थी। बीप की आवाज़ से मोबाइल बजा। मेसेज है किसी का। भेजने वाले का नाम देख कर दिल धक् से रह गया। ईशान था, पूछ रहा था, "कवि, खाना खा ली?" वैसे ही जैसे वो कॉलेज में पूछा करता था, कुछ नहीं बदला। मेरी मुस्कराहट ज़रा चौड़ी हो गयी। कहता था ईशान, "फिकर नॉट, कुछ नहीं बदलेगा।"
मैंने रिप्लाई किया , "नहीं"
जल्द ही एक और मेसेज आया, "कवि, ज़रा दरवाज़ा खोल न"
मैं भागी भागी दरवाज़ा खोलने को दौड़ी। ये लो, सामने खड़ा था ईशान, हाथ में डोमिनोज का बड़ा सा थैला लिए हुए।
"तू बिलीव नहीं करेगा, मैंने तुझे आज कितना याद किया!"
"झूठी"
"अरे,झूठी क्यों"
"याद करने वाले फ़ोन करते है, मेसेज करते है। ये वाला "याद" काउंट नहीं होगा।
"अच्छा बाबा! तू दिल्ली कब आया। और आने से पहले बताया क्यूँ नहीं"
"वो क्या है न कवि, दिल से दिल का कनेक्शन। तुमने बुलाया और हम चले आये।" और ईशान खिलखिलाया।
फिर वो आगे बोला, "बस १ घंटे पहले लैंड किया, पिज़्ज़ा लिया और सीधे तेरे घर। रविश सर कहाँ है, मुझे तो लगा था की अब वापस आ गए होंगे ऑफिस से। आज कल कुछ ज्यादा ही नोट छाप रहे है क्या?"
"उनकी कंपनी की पार्टी है, मेरा मन नहीं था तो मैं नहीं गयी।"
"अरे मैंने तो लार्ज पिज़्ज़ा ले लिया था, सोचा था की तीनो मजे से खायेंगे। चल छत पर, बहुत जोरो की भूख लगी है।"
मैंने फ्रिज से एक बोतल पानी लिया और हम पहुँच गए छत पर।
"अच्छा, कृति नहीं आई? और तू उस से क्यूँ लड़ता है इतना। तुझे पता भी है कितना परेशान हो जाती है वो!"
" कवि , वो लड़ाई से न प्यार बढ़ता है इसलिए। नहीं, उसकी माँ आई है तो वो वही रुक गयी। इतने सालो में कोई भी मेरी लड़ाई छिपी है क्या तुमसे, वैसे भी तू उसकी पार्टी में क्यूँ रहती है हमेशा। तू मेरी दोस्त है उसकी ।"
"कृति तो कहती है कवि तू ही सम्हाल इसे, मेरे हाथ मनाही है तेरा दोस्त।"
और हम दोनों खिलखिला कर हँस पड़े। बातें करते हुए टाइम निकलता ही गया। रात १० बजे मीटिंग थी उसकी और सुबह की वापस फ्लाइट।
जाने का वक़्त हो गया।
ईशान ने पॉकेट से एक लिफ़ाफा निकला। लिफ़ाफा मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोला,"कवि, तेरे लिए कुछ बाज़ार में तो मिलता नहीं, ये रख ले।"
मैंने लिफ़ाफा खोल कर देखा, एक सुखा हुआ गालब था अन्दर।
सच में, कुछ भी नहीं बदला।
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