ये कहावत जिन्दा क्यूँ है

चीज़ सामान के साथ लोगों की भी आदत हो जाती है। फिर जब जगह-परिस्थिती बदलती है, तो बहुत संघर्ष करना परता है सामंजस्य बैठाने के लिए। दुनिया कहती है कि सब मोह-माया है; "एकला चलो रे" ही सही सिद्धान्त है। पर दूसरी ओर बचपन के निबंधो में अनगिनत बार लिखा वाक्य "मनुष्य एक सामाजिक जीव है। यह महान लोगो के कथन और सदियों से चली चली आ रही कहावते, सब परस्पर विरोधी क्यों है. मैं ऊपर आसमान कि ओर देखा, एक अकेला तारा बड़े शान के साथ टिमटिमा रहा था। दो परस्पर विरोधी विचार जेहन में कौंधे; क्या ये तारा अकेला खुश होगा! क्या क्या वो ये सोच रहा होगा कि अभी तो पुरे आसमान का अकेला राजा है. वही दूसरी सोच ये थी कि क्या इस तारे तो डर लग रहा होगा कि इतने बड़े आसमान में ये अकेला कैसे रहेगा। 

पीछे रोड पर एक बड़ा सा ट्रक कर्कश हॉर्न बजता हुआ निकला। तन्द्रा टूटी। सामने दीवाल पर मैंने लिख रखा है,"First they ignore you, then they laugh at you, then they fight you, then you win." महात्मा गाँधी का ये वाक्य अभी मुझे काफी साधारण सा लगा, पर मुझे याद है, जिन दिनों में मैंने गाँधी जी के विचार को दीवार पर लिखा था, तब जरुरत थी मुझे इस कथन की. कुछ लोगों ने मेरा मजाक बनाया और मैं लग गया खुद को प्रुव करने में, और उस दौरान ये कथन मेरे पर सही बैठी।

फिर सच क्या है?

कौन से कहावत सच है?

सारे या कोई भी नहीं। आखिर सदी दर सदी ये कहावत जिन्दा क्यूँ है।

ये कहावत शायद इस लिए जिन्दा है क्यूंकि ये गवाह है इस बात कि जिस परिस्तिथी में हम आज है, ये कोई नयी नहीं है। हम से पहले भी हज़ार लोगो इस परिस्तिथी से गुजर चुके है, और जो समस्या से हम आज जूझ रहे है, ये कोई नयी नहीं है। और जब इतने लोग ऐसी समस्या से निकल चुके है तो फिर हम क्यूँ नहीं। ये कहावते वैस्विक एकता का उदहारण है कि व्यक्ति चाहे संसार के किसी भी कोने का हो, चाहे जो भी मानता हो, चाहे जो भी बोली बोलता हो, पर वस्तुतः जरुरत एक ही है। हमारी भावनायें एक ही है।

शायद गीता का सार इस लिए लोकप्रिय है क्योंकि वो हमारे अच्छे बुरे सभी कर्मो को सही ठहरा कर आगे बढ़ने में मदद करता है:

जो हुआ, अच्छा हुआ!
जो हो रहा है, वो भी अच्छा हो रहा है!
जो होगा, वो भी अच्छा होगा!


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