जिन्दा हूँ मैं।
जिन्दा हूँ मैं।
हर रोज़ लड़ता हूँ,
खुद की अकांक्षा के बोझ से,
दिन की नीरसता से,
रात के अँधेरे से.
हर रोज़ लड़ता हूँ,
खुद की अकांक्षा के बोझ से,
दिन की नीरसता से,
रात के अँधेरे से.
हर रोज सोचता हूँ,
क्या है कल में,
हक़ीक़त और सपनो के अंतर में,
जीवन से सफर के अंत में,
हर रोज़ कोशिश करता हूँ,
आज को जीने की,
गलतियों से सिखने की,
आज को कल से बेहतर बनाने की,
जिन्दा हूँ मैं; क्योंकि,
हर रोज़ लड़ता हूँ,
हर रोज़ सोचता हूँ और
हर रोज़ कोशिश करता हूँ।
क्या है कल में,
हक़ीक़त और सपनो के अंतर में,
जीवन से सफर के अंत में,
हर रोज़ कोशिश करता हूँ,
आज को जीने की,
गलतियों से सिखने की,
आज को कल से बेहतर बनाने की,
जिन्दा हूँ मैं; क्योंकि,
हर रोज़ लड़ता हूँ,
हर रोज़ सोचता हूँ और
हर रोज़ कोशिश करता हूँ।
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