वो (भाग १ )
कहने को तो कई साल बीत गए. बात भी नहीं होती अब तो उस से
ज्यादा। हाँ, कभी कभार बात होती है. कुछ ख़ास नहीं, बस दुआ-सलाम और
हाल-चाल। दिल की बातें जुबान से कहीं भी नहीं जाती और मैं क्या कोई भी कह
नहीं पाता होगा। पर उम्मीद करता हूँ सब पता ही होगा उसे, जो नहीं कहा शायद
वो भी। समय भागा जा रहा है। मुश्किल है इसके साथ चलना। पीछे पलट कर देखना
तो भूल ही जाओ, बस किसी तरह बस हर वक़्त कोशिश करता हूँ ज्यादा पीछे ना
छूट जाऊं। सिनेमा - कहानियाँ कोई यूँ ही नहीं लिखता। अंदर एक कोने में दबे
हुए किस्से होते है, जो वक़्त- बेवक़्त छोटी - छोटी चीज़ों से याद आ जाती है।
और मेरे साथ, शायद ये कुछ ज्यादा ही होता है।
कितने साल से मेरे बैग में उसकी कलम है। उसने माँगा भी था कभी,
और मैंने वापस करने का वादा भी किया था। कह नहीं सकता कि मैं भूल गया या
भूलने का नाटक किया, पर नतीज़ा ये है कि मेरे बैग में अभी भी उसकी कलम है। नहीं देना चाहता वापस।
ये आदत भी बुरी चीज़ है। नींद में हाथ टटोलते हुए फ़ोन
ढूँढना और खुद बा खुद फ़ोन लगाना। समय लग गया ये सब छोड़ने में। अब तो नींद
टूट जाती है। फ़ोन में कुछ फ़ोटो देख लेता हूँ और झरोखों से चाँद देखते
हुए सोने कि कोशिश करता हूँ। चाँद उतना ही खूबसूरत है। कभी-कभी तो लगता
है कि चाँद चिढ़ाता रहता है मुझे।
नादान है चाँद। मैं मुस्कुरा देता हूँ उसकी नादानी पर।
नादान है चाँद। मैं मुस्कुरा देता हूँ उसकी नादानी पर।
अभी
ऑफिस में हूँ। चाय पीने कि तलब हो रही है। दूसरे सभी काम कर रहे है। तेज
हाथो से कीबोर्ड पर थप्पड मारती आवाज़ें गूंज रही है। अकेले जाना होगा
चाय पीने। पहले कॉलेज में ये चाय पीने का कार्यक्रम १ घंटे से कम का नहीं
होता था। अपने हॉस्टल से उसके हॉस्टल से जाने में अजीबोगरीब बातें सोचता
था और फिर हम दोनों उन बातों पर और कहानियाँ बना कर हँसते थे।
क्रमशः अगले पोस्ट में
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