पोलिटिकल बकवास

चुनाव का मौसम है।   ऑफिस  आते जाते रोड पर चुनाव की चहल पहल दिख जाती है। चंद रोज पहले कांग्रेस के प्रत्याशी का रोड शो था।  शायद मैं उनके काफिले के ५-१० मिनट बाद पहुँचा था।  रोड पर  फूल बिखरे पड़े थे।  अभी शायद कुछ समय पहले वो नेता जी के गले की शोभा बने फिर रहे होंगे।  बचपन में एक कविता पढ़ी थी - पुष्प की अभिलाषा।  बचपन में तो इतने समझने की शक्ति नहीं थी की कवि क्या कहना चाहते है।  तब तो बुरा ही लगता था की कवि क्यों कहते है, परीक्षा में "प्रस्तुत पंक्तियाँ माखन लाल चतुर्वेदी द्वारा रचित पुष्प की अभिलाषा नाम की कविता से ली गयी है। " यहाँ तक लिखने के बाद समझ ही नहीं आता था की आगे क्या लिखा जाए।  खैर मैं वो कविता नीचे प्रस्तुत करता हूँ।  

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।। 

अगर कवि सही कह रहे है तो पुष्प पर दया आ रही है क्यूंकि उस पथ पर तो ऐसे लोग आज कल चल रहे है जो "लड़को से गलती हो जाती है" कह कर वोट बटोरना चाहते है।  ये आम जनता सुबह ९ बजे से लेकर शाम ८ बजे तक धुप में बसो में धूल फांकती है, बॉस की डांट सुनती है, और फिर जो पैसे मिलते है; उनमे से आयकर भर्ती है।  इस पथ पर वो लोग चल रहे है, जो ऐसे आम लोगो से जुटाए हुए लाखों-कडोडों रूपए  खा लेते है और फिर भी निर्लज की तरह वोट मांगते है। कैसे?पुष्प पर दया आ रही है। 

एक रोज़  मैंने ऐसे प्रत्याशी का नाम देखा जिसकी पार्टी का भी नाम कभी नहीं सुना।  शायद नहीं जीतेगा वो।  पर ख़ुशी हुयी लोकतंत्र को देख कर।  कम  से कम हमारे सविंधान ने तो सभी को बराबर अधिकार दिए है।   अगले रोज़ मुझे कुछ लोगो का झुण्ड दिखा जो ऑफिस जाने वाले लोगो का लग रहा था।  वे एक कंधे पर ऑफिस वाला बैग लटकाये थे और दूसरी तरफ ढोल।  ढोल पीट कर वो आम आदमी पार्टी के लिए वोट मांग रहे थे।  धीरे धीरे ही सही अब राजनीति आम जनता को भी रास आने लगी है।  अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी ने अब आम लोगो को भी राजनीति का नशा लगवाना शुरू कर दिया है।  

कितने भी आरोप लगे हो आम आदमी पार्टी पर, लेकिन दिल अभी भी उनकी तरफ है।  वो कोशिश  तो कर रहे है। कई क्षेत्रीय क्षत्रप मसलन लालू यादव, नीतीश कुमार, मुलायम जैसे नेता हैं।  अपने अपने क्षेत्र के महारथी।  लेकिन अपने राजनैतिक करियर में कोई इतने काम समय में राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी पहचान नहीं बना पाया। आज "आप " दिल्ली में भी है और केरल में भी, महाराष्ट्र में भी और पंजाब में भी।  ओपिनियन पोल्स में नरेंद्र मोदी,राहुल गांधी के बाद अरविन्द केजरीवाल का नाम आता है।  अगर उन्हें ऐसे पोल्स में १० प्रतिशत वोट भी मिलते है तो वाकई में ये एक बड़ी सफलता है।  अगर आज सोशल मीडिया पर अरविन्द केजरीवाल के नाम का मजाक बनता है, इसका मतलब की दूसरी राजनैतिक पार्टी उन्हें गंभीरता से ले रही है।  

पर इतिहास में अगर अरविन्द केजरीवाल का नाम अदब से लिया जायेगा तो उसका एक महत्वपूर्ण कारण "राजनीति में युवाओं, विशेषकर शहरी युवाओं के रूचि बढ़ाने " में उनके प्रयासों का होगा। आज अरविन्द केजरीवाल जिन दो पार्टी को चोर-चोर बोल रहे है, ऐसा हो सकता है की कल को उन्हें दोनों में से एक का हाथ थामना पड़े। ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी होगा। अगर अब तक आम आदमी पार्टी से की गयी गलतियों को मैं उनके राजनैतिक अपरिपक्यता समझ कर ख़ारिज कर दूँ तो उन्हें इतना समझ लेना चाहिए कि  इस "आम आदमी" की उम्मीदे उनकी पार्टी से बहुत ज्यादा है।  बीजेपी / कांग्रेस  से कहीं ज्यादा।  कल को अगर  बीजेपी / कांग्रेस की सरकार आती है तो ये जनता मान कर बैठी है कि  वे घोटाले करेंगे, पर आप की सरकार से ये उम्मीदे नहीं है।  कल को अगर आप बीजेपी / कांग्रेस की सरकार में शामिल हो कर मंत्रीमंडल में शामिल हो गयी तो हम ये उम्मीद करेंगे की उनके मंत्री अच्छा काम करेंगे। अब उनके बहाने लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे, और मैं कतई नहीं चाहूंगा की मैं अपने किसी लेख में  बीजेपी / कांग्रेस के बाद / आप लिखूं।  यहाँ पर इतिहास से एक उदहारण लेते है: 

"In this very short list also appears the name of Madhu Dandavate. When Dandavate passed away recently, the newspapers noted his stewardship of the Finance Ministry in the National Front Government of the late 1980s. That was a job he did honourably and well, but far more significant (though unmentioned by the obituarists) was his stewardship of the Railway Ministry in the Janata Government of the late 1970s. It was Dandavate who first introduced the computerisation of railway reservations, an innovation that greatly reduced corruption and made life less intolerable for commuters.
Dandavate’s second innovation was more far-reaching still. This was to put two inches of foam on what passed for ‘reserved sleeper berths’ in the second-class sections of trains. Many readers of this column know only these new berths; but many others would remember the bad old ones too. Before 1977 (the year Dandavate became Railway Minister), there was an enormous difference between the first-class, where the berths were padded, and the second-class, where they were made of hard and bare wood. If you were lucky enough to travel up front, you slept well; otherwise you woke up with a painful back and (were it winter) a cold in the head as well. "

श्रोत : http://ramachandraguha.in/archives/two-inches-of-foam.html

जनता सरकार महज २ सालों के लिए थी पर मौका मिलने पर मधु दंडवते ने जो किया वो वाकई में काबिलेतारीफ था।  ऐसा मेरा मानना है की राजनीति में लोग जनता की सेवा के लिए जाते है। अरविन्द केजरीवाल को भी मौका मिला था दिल्ली में सरकार चलाने का।  जरुरत थी उस समय ज़रा परिपक्यता दिखाते हुए लोगो की समस्याएं सुलझाने की। खैर अभी आगे और मौके आएंगे। आप पर कई तरह के  आरोप भी लगेंगे। उन्हें मौका मिलने पर दिखाना होगा की वो यहाँ लोगो की समस्या सुलझाने  के लिए है।  भागने से कुछ नहीं होगा।

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