मैं तो बस एक बोझ हूँ .
कल इक्कीसवा जन्मदिन है मेरा। आज चौथी बार मुझे सलोनी के नए सलवार कमीज़ में "पैक" कर लड़के वालो के सामने पेश किया गया। "ना " ही करेंगे वो लोग. फ़ोन नहीं उठाएंगे, या बोलेंगे रिश्ते के चाचा का देहांत हो गया, इसलिए अब एक साल तक शादी नहीं हो सकती। कुछ मुँहफट तो सीधे बोलेंगे, "लड़की की हाईट कम है" या "थोडा रंग कम है" . माँ कभी कुछ नहीं बोलती। वो भी क्या बोलेगी बेचारी। उसने तो एक दफ़ा तो ये सब देखा हुआ है। वो भी तो कभी लड़की थी। आज सोचती हूँ कि आज अगर पापा की नौकरी होती तो मैं भी पूनम मौसी की बेटी की तरह इंजीनियरिंग करके हजारों सपने बुन कर बैठी होती। ऐसा भी नहीं था कि मेरी पढाई की कोई इच्छा ही नहीं था। मेरे लिए तो मेरे माँ-बाप के पास पढ़ाने के पैसे ही नहीं थे, वरना इक्कीस साल की उम्र में शादी कौन करता है। अभी तो सपने देखने में भी डर लगता है, अच्छे सपने गाली लगते है। माँ कहती है कि जल्दी से तेरी शादी कर दूँ तो फिर छोटू को ही आगे तक पढ़ने की जिम्मेदारी रह जाएगी। ठीक ही तो कहती है माँ, वैसे भी मुझे पढ़ा कर उनको क्या मिलेगा। क्या गारंटी है की अगर मैं पढ़ लिख कर नौकरी भी कर रही होती तो मेरा पति मुझे अपने माँ - बाप की मदद करने देगा ? कम से कम छोटू से वो इतनी तो उम्मीद कर ही सकते है। मैं तो बस एक भारी झोले की तरह हूँ जो जितनी जल्दी माँ बाप के सर से हट जाये, उनके लिए उतना ही अच्छा हो। जो लड़की वाले मुझे पसंद भी कर लेते है, उन्हें भी ढेर सारे पैसे चहिये। पापा आठ लाख तक देने के लिए तैयार है। पता नहीं कहाँ है वो आठ लाख। ना जाने कितने ही लोग के सामने हाथ फैला कर भीख मांगेंगे, और न जाने उनकी कितनी रातें जागी बीतेंगी।
मैं तो बस एक बोझ हूँ .
लड़के वालो की भी अपनी मजबूरी है ; उनकी भी बहनें होती है। उन्हें भी उनकी शादी करनी होती है। जितनी ज्यादा पैसा उतना "अच्छा" लड़का . "अच्छा " मतलब "अच्छी " नौकरी वाला। आदमी कैसा है, ये तो शादी के बाद ही पता चलेगा। पापा एक -दो लोगो से पूछेंगे। वो भी बस अपने दिल को सान्तवना देने के लिए। टीवी खरीदने के लिए एक महीने तक १ ० कंपनियों के पर्ची रिसर्च करेंगे, और जिन्दगी भर का रिश्ता बस ऐसे ही।
अँधेरा है हर तरफ, कूदने पर ही पता चलेगा की गहराई कितनी है।
लड़के वालो को भी "अच्छी" लड़की चाहिए। "अच्छी" मतलब अच्छी दहेज़ देने वाली। मैं कौन हूँ, इस से किसी को क्या फर्क पड़ता है। मैंने तो अच्छी पढाई भी नहीं की, कोई क्यूँ पसंद करेगा मुझे।
काश मेरा बाप भी अमीर होता।
मैं तो बस एक बोझ हूँ .
लड़के वालो की भी अपनी मजबूरी है ; उनकी भी बहनें होती है। उन्हें भी उनकी शादी करनी होती है। जितनी ज्यादा पैसा उतना "अच्छा" लड़का . "अच्छा " मतलब "अच्छी " नौकरी वाला। आदमी कैसा है, ये तो शादी के बाद ही पता चलेगा। पापा एक -दो लोगो से पूछेंगे। वो भी बस अपने दिल को सान्तवना देने के लिए। टीवी खरीदने के लिए एक महीने तक १ ० कंपनियों के पर्ची रिसर्च करेंगे, और जिन्दगी भर का रिश्ता बस ऐसे ही।
अँधेरा है हर तरफ, कूदने पर ही पता चलेगा की गहराई कितनी है।
लड़के वालो को भी "अच्छी" लड़की चाहिए। "अच्छी" मतलब अच्छी दहेज़ देने वाली। मैं कौन हूँ, इस से किसी को क्या फर्क पड़ता है। मैंने तो अच्छी पढाई भी नहीं की, कोई क्यूँ पसंद करेगा मुझे।
काश मेरा बाप भी अमीर होता।
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