एक सफ़र..
नव वर्ष की बधाइयाँ !!!!
सुबह-सुबह ट्रेनों में "चाय-चाय" के सद्यिओं पुरानी गला बैठा कर निकाली गयी आवाज़ के आदी मेरे कानो को जब लोहे की टकराने की आवाज़ सुनाई दी, तो मेरा पहला अंदेशा ट्रेन की पटरी से उतर जाने का था. भारत में रहते हुए और ट्रेन में सफ़र करते हुए ट्रेनों की पटरी से उतर जाने पे दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि भगवन का धन्यवाद देना चाहिए कि "पटरी से ही उतरी, पुल से नहीं गिरी". खैर ठण्ड की सुबह कम्बल से निकलना अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उस आवाज़ की उत्सुकता ने बाहर आने पर मजबूर कर दिया. और जो मैंने देखा, वो आप लोग भी नीचे चित्र में देखिये.
सुबह-सुबह ट्रेनों में "चाय-चाय" के सद्यिओं पुरानी गला बैठा कर निकाली गयी आवाज़ के आदी मेरे कानो को जब लोहे की टकराने की आवाज़ सुनाई दी, तो मेरा पहला अंदेशा ट्रेन की पटरी से उतर जाने का था. भारत में रहते हुए और ट्रेन में सफ़र करते हुए ट्रेनों की पटरी से उतर जाने पे दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि भगवन का धन्यवाद देना चाहिए कि "पटरी से ही उतरी, पुल से नहीं गिरी". खैर ठण्ड की सुबह कम्बल से निकलना अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उस आवाज़ की उत्सुकता ने बाहर आने पर मजबूर कर दिया. और जो मैंने देखा, वो आप लोग भी नीचे चित्र में देखिये.
ये दृश्य है, धमारा घाट नाम के स्टेशन का. आस पास के लोगो ने बताया की ये जगह दूध के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, और पूरी मिथिलांचल में किसी के शादी-श्राद्ध आदि अवसरों के लिए दूध यही से मंगाया जाता है. ये साइकिल दूध के व्यापारियों की है. लोगो ने बताया की खास अवसरों के लिए दूध का आर्डर पहले देना पड़ता हैं और तय दिन दूध के सौदागर साइकिल और दूध के कनिस्तर सहित ट्रेन में चढ़ते है और ग्राहक के गाँव के नजदीकी स्टेशन उतर कर सीधे साइकिल से ग्राहक के घर. ये रीती मीटर गेज़ वाली ट्रेन के समय से है और अब तक चल रही है. जब मैंने रेल पुलिस के नजरिये के बारे में जानना चाहा तो मुझे बताया गया की १० रुपये में सब कुछ चलता है. हाँ यहाँ रुपया को रुपया नहीं रूपा बोला जाता है.
ग्रामीण इलाको में बदलाव साफ़ दिख रहा है, और इस बदलाव के सूचक है चाइना के मोबाइल और डिश टीवी. बेचारा दूरदर्शन जो ग्रामीण इलाको में अपने कुछ कार्यक्रम दिखता था, अब उसका वो भी आधार ख़त्म होता दिख रहा है. झाँसी की रानी को अब गाँव का बच्चा बच्चा पहचानता है, जी टीवी पे चल रहे "झाँसी की रानी" के कारण, उधर बिग बॉस को गाँव की दादी नानी भी पहचानती है. गाँव के युवा अब पान की गुमटी पर गाना नहीं सुनते, भाई सब के पास अब चार चार स्पीकरों वाला फ़ोन है जिनपे कुमार सानु के अमर गीत बजते है. मोबाइल सेवाओं के घटते हुए दाम ने अपना असर दिखाया है. अब घूँघट के अन्दर से नयी दुल्हन अपने पति को सर्फ़ -साबुन के लिए फ़ोन करती है.
जो भी हो, अच्छा लग रहा है और आपको??
Comments
naye saal me naye josh ke saath hindi ka prayog acha hai!